Political angle of historiography.

 शिक्षा से मनुष्य अच्छा नहीं चालाक बनता है, चिंता कि मुद्रा प्रकृति के विरूद्ध है।सोचनेवाला मनुष्य पतित प्राणी होता है जब से समाज में पंडितों कि संख्या बढ़ी तभी से ईमानदार लोगों की संख्या घटने लगी।बुद्धि का जो क्षिप्र विकास हो रहा है उसे रोक देने में ही  मानवता का कल्याण है, इसके बदले में मनुष्य के हृदय और आत्मा का विकास करना चाहिए।- रूसो

रूसो के इस कथन से मैं पूर्ण रूप से सहमत तो नहीं हूं परन्तु आज इतिहास को लेकर जिस तरह के वाद विवाद हो रहे हैं और इतिहास के पुनर्लेखन संबंधित आदि बातें उभरकर आती है इस अर्थ में रूसो का यह कथन बहुत हीं प्रासंगिक हो जाता है।

भारतीय इतिहास विभिन्न धर्मों संप्रदायों और जातियों के हितों के विरोधाभासों का इतिहास रहा है।प्राचीन काल से ही यहां विभिन्न आक्रमण हुए और अलग अलग लोग यहां आकर अपना निवास स्थान बनाए।इसलिए यदि भारतीय इतिहास के शासक को यदि शासक के रूप में ना देखकर उसे धार्मिक शासक के रूप में निरूपित करेंगे तो दिक्कतें और भी बढ़ती जाएगी।

कोई शासक किसी समूह का आदर्श है और वही शासक किसी समूह का विरोधी।ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में देखने को मिलते है शासकों के हित राजनैतिक होते थे,

हो सकता है वह शासक बहुत हद तक धर्मांध रहा भी हो लेकिन उसके पीछे उसका राज्य हित और उसका शासकीय हित जरूर होता था।

मेरा समझ जहां तक है की इतिहास को आज के किसी इतिहासकार ने खुद से देखा नहीं है जो भी वह लिखते हैं वह साक्ष्यों पर आधारित होता है। सीमित साक्ष्य के आधार पर अपनी कल्पना से इतिहास कि रचना करते है इसलिए इतिहास को व्यक्तिगत  सम्मान से देखना तो मूर्खता ही होगा।ज्यों ज्यों मानव विकास करता जा रहा है वह अपने अतीत के उधेड़बुन में और भी बूरी तरह फसता जा रहा है(भारतीय परिदृश्य में)। इसलिए मुझे जहां तक लगता है कि इतिहास का लेखन प्रतिशोध और विरोधाभास पूर्ण नहीं होना चाहिए।इतिहास के पन्ने अनेक शिक्षाओं से भरी पड़ी है लेकिन विडंबना यह है कि आज हम शिक्षा को ग्रहण करने के बजाय पुनः वही गलतियां दोहराने को आतुर हैं।

इसलिए इतिहास का ऐसा लेखन होना चाहिए जिसमें अतीत के काले पन्नों का धार्मिक परिपेक्ष्य में महिमामंडन ना कर उसका सही दिशा में लेखन होना चाहिए।

पंडित नेहरू यहां बहुत ही प्रासंगिक दिखते हैं वे कहते है कि "हमें अतीत   का उतना हीं महिमामंडन करना चाहिए जितना जरूरी हो,वर्तमान और भविष्य के बारे में अधिक ध्यान देना चाहिए।"

यह सत्य है कि हम अतीत में पुनः नहीं लौट सकते लेकिन अपने वर्तमान और भविष्य को जरूर उन्नत कर सकते हैं।इसलिए अतीत से सीख लेने कि जरूरत है ना कि उसका किसी विशेष परिपेक्ष्य में महिमा मंडन करने की।

ये मेरे अपने विचार है आप स्वच्छंद है।तार्किकता हीं मनुष्य का विशेष गुण है।

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